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भारत की आत्मा है हिंदू संस्कृति – मोहन भागवत का बड़ा बयान

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HIGHLIGHTS
  • आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा – भारत की आत्मा हिंदू संस्कृति है।
  • कार्यक्रम ‘100 साल का संघ: नए क्षितिज’ में दिया भाषण।
  • भागवत बोले – संघ सत्ता नहीं, समाज सेवा के लिए है।
  • भारत का हिंदू राष्ट्र होना संविधान के खिलाफ नहीं बताया।

 

भारत में जब भी संस्कृति, एकता या राष्ट्र की आत्मा पर चर्चा होती है, तो RSS chief Mohan Bhagwat का नाम सामने आना तय है। बेंगलुरु में हुए कार्यक्रम “100 साल का संघ: नए क्षितिज” में मोहन भागवत ने फिर से ऐसा भाषण दिया जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी। उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा हिंदू संस्कृति है और देश में कोई “अहिंदू” नहीं है।

उनके भाषण में न तो सत्ता की बातें थीं, न राजनीति का मोह — बल्कि समाज की सेवा, संगठन और भारत माता की महिमा बढ़ाने की बात थी। और हाँ, उनके बोलने के अंदाज़ में वह संतुलन भी था जो एक शताब्दी पुरानी संस्था के मुखिया में दिखता है।


कार्यक्रम की झलक: ‘100 साल का संघ – नए क्षितिज’

बेंगलुरु के भव्य सभागार में आरएसएस के शताब्दी समारोह का माहौल कुछ अलग ही था। मंच पर सरसंघचालक मोहन भागवत, सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले और कई सामाजिक हस्तियां मौजूद थीं।

भागवत ने अपने 41 मिनट के भाषण में न केवल संघ के 100 साल के सफर की चर्चा की, बल्कि भारत की सांस्कृतिक जड़ों पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत को ब्रिटिशों ने नहीं बनाया, यह तो सदियों पुराना राष्ट्र है जिसकी आत्मा हिंदू संस्कृति में बसती है।


भागवत की पांच बड़ी बातें

भागवत ने अपने संबोधन में पाँच ऐसे बिंदु रखे जो कार्यक्रम की आत्मा कहे जा सकते हैं। ये न सिर्फ संघ की विचारधारा को समझाते हैं बल्कि भारत के सांस्कृतिक दृष्टिकोण को भी उजागर करते हैं।

क्रमांक विषय मुख्य संदेश
1 भारत की प्राचीनता भारत को ब्रिटिशों ने नहीं बनाया, यह सदियों पुराना राष्ट्र है।
2 हिंदू संस्कृति की परिभाषा हर व्यक्ति भारतीय संस्कृति का पालन करता है, चाहे जाने या न जाने।
3 संविधान और हिंदू राष्ट्र हिंदू राष्ट्र की अवधारणा संविधान के खिलाफ नहीं है।
4 संघ का संघर्ष संघ पर प्रतिबंध लगे, स्वयंसेवकों की हत्या हुई, फिर भी सेवा जारी रही।
5 समाज तक पहुंच संघ अब हर गांव, हर जाति, हर वर्ग तक पहुंचेगा।

1. भारत को ब्रिटिशों ने नहीं बनाया

मोहन भागवत ने कहा कि भारत का निर्माण किसी साम्राज्य या अंग्रेजी प्रशासन की देन नहीं है। यह भूमि अपने आप में एक प्राचीन सभ्यता है। हर देश की एक मूल संस्कृति होती है और भारत की वह संस्कृति “हिंदू संस्कृति” है।

उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “आप चाहे किसी भी परिभाषा से शुरू करें, आखिर में आप ‘हिंदू’ शब्द पर ही पहुंचेंगे।” यह सुनकर मंच के नीचे बैठे स्वयंसेवकों की तालियों की गड़गड़ाहट सभागार में गूंज उठी।


2. हिंदू होना मतलब जिम्मेदारी लेना

भागवत ने कहा, “हर व्यक्ति जो भारत में जन्मा है, वह किसी न किसी रूप में हिंदू संस्कृति का पालन करता है। वह चाहे जाने या न जाने।”
उन्होंने आगे जोड़ा, “हिंदू होना मतलब भारत के प्रति जिम्मेदारी लेना।”

यह सुनकर कई लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ गई — शायद इसलिए कि यह बात धार्मिक पहचान से अधिक, एक नैतिक जिम्मेदारी जैसी लगी। उन्होंने यह भी कहा कि मुसलमान और ईसाई भी इसी भूमि के वंशज हैं, बस कुछ भूल गए हैं या उन्हें भुला दिया गया है।


3. हिंदू राष्ट्र और संविधान

भागवत का यह बयान शायद सबसे चर्चित हिस्सा रहा। उन्होंने साफ कहा,
“भारत का हिंदू राष्ट्र होना किसी के विरोध में नहीं है। यह हमारे संविधान के खिलाफ नहीं है, बल्कि उसके अनुरूप है।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ समाज को जोड़ने का काम करता है, तोड़ने का नहीं। उनके इस बयान को सुनकर वहां मौजूद कई बुद्धिजीवी सिर हिलाते नजर आए — कुछ सहमति में, कुछ सोच में डूबे हुए।


4. संघ का संघर्ष और यात्रा

आरएसएस का 100 साल का सफर किसी साधारण संस्था जैसा नहीं रहा। भागवत ने याद दिलाया कि संघ पर दो बार प्रतिबंध लगा, तीसरी बार लगाने की कोशिश हुई, स्वयंसेवकों की हत्या हुई, लेकिन काम रुकने नहीं दिया गया।

उन्होंने कहा, “संघ सत्ता के लिए नहीं बना, यह समाज की सेवा के लिए बना है। अगर सत्ता चाहिए होती, तो अब तक हम चुनाव लड़ चुके होते।”
यह वाक्य सुनते ही सभा में ठहाके भी लगे — क्योंकि यह व्यंग्य भरा लेकिन सच्चाई से जुड़ा बयान था।


5. संघ का लक्ष्य – हर गांव तक पहुंचना

भागवत ने कहा कि आने वाले वर्षों में संघ का फोकस “हर गांव, हर जाति और हर वर्ग तक पहुंचने” पर रहेगा। उन्होंने कहा कि भारत की विविधता उसकी कमजोरी नहीं, बल्कि एकता की सजावट है।

उनका संदेश सीधा था — “हम सब अलग-अलग रंगों के फूल हैं, लेकिन माला एक ही है — भारत।”


भागवत के हाल के तीन प्रमुख बयान

संघ प्रमुख पिछले कुछ महीनों में लगातार समाज, संस्कृति और राष्ट्रीय एकता पर बात करते रहे हैं।

7 नवंबर: समाज सिर्फ कानूनों से नहीं चलता

नागपुर में भागवत ने कहा था कि समाज सिर्फ कानूनों से नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और अपनापन से चलता है। उन्होंने कहा कि अगर लोगों में एक-दूसरे के प्रति सच्चा अपनापन नहीं होगा, तो कोई भी कानून समाज को मजबूत नहीं कर सकता।

11 अक्टूबर: RSS जैसी संस्था केवल नागपुर में बन सकती थी

भागवत ने कहा कि नागपुर की मिट्टी में पहले से ही त्याग और समाजसेवा का भाव था, इसलिए आरएसएस जैसी संस्था वहीं बन सकी। उन्होंने याद दिलाया कि डॉ. हेडगेवार ने 1925 में संघ की स्थापना अनुशासन और सांस्कृतिक जागरूकता के लिए की थी।

2 अक्टूबर: अंतरराष्ट्रीय निर्भरता मजबूरी न बने

विजयादशमी के दिन भागवत ने कहा कि भारत को अंतरराष्ट्रीय संबंधों में समझदारी रखनी चाहिए। पहलगाम हमले का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि “हम सबके दोस्त हैं, पर अपनी सुरक्षा के लिए सजग रहना जरूरी है।”


भागवत के विचारों की गहराई

मोहन भागवत के भाषण को केवल एक राजनीतिक बयान के रूप में नहीं देखा जा सकता। उनके विचार सांस्कृतिक दर्शन पर आधारित हैं। वे बार-बार कहते हैं कि भारत की आत्मा उसकी संस्कृति में बसती है, न कि सत्ता या सीमा में।

कई बार उनके बयान विवादों में घिर जाते हैं, लेकिन यह भी सच है कि वे हमेशा “समाज को संगठित” करने की बात करते हैं। उनके अनुसार, हिंदू शब्द धर्म नहीं बल्कि “जीवन जीने की एक शैली” है।


लोगों की प्रतिक्रिया

कार्यक्रम के बाद सोशल मीडिया पर भागवत के भाषण पर खूब चर्चा हुई। कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने “भारत की असली पहचान” की बात की, जबकि कुछ ने कहा कि “संविधान और धर्म को एक साथ जोड़ना” सही नहीं है।

कई लोगों ने मजाक में ट्वीट किया, “भागवत जी का भाषण सुनकर तो ऐसा लगा जैसे Netflix की जगह ‘संघ-फ्लिक्स’ शुरू हो गई हो।”
पर हंसी-मजाक के बीच यह बात तय है कि उनका भाषण लंबे समय तक चर्चा में रहेगा।


RSS का 100 साल का सफर – एक नजर

वर्ष प्रमुख घटना महत्व
1925 डॉ. हेडगेवार ने नागपुर में स्थापना की अनुशासन और समाज सेवा की नींव रखी
1948 संघ पर पहला प्रतिबंध गांधीजी की हत्या के बाद
1975 आपातकाल में फिर प्रतिबंध स्वयंसेवकों ने भूमिगत काम जारी रखा
2025 100 साल पूरे “नए क्षितिज” कार्यक्रम के साथ शताब्दी वर्ष

संघ ने चाहे कितनी भी आलोचना झेली हो, उसका संगठनात्मक ढांचा लगातार मजबूत हुआ है।


संघ और सत्ता – क्या फर्क है?

भागवत ने अपने भाषण में बार-बार कहा कि “संघ सत्ता नहीं चाहता।”
उन्होंने हँसते हुए कहा, “हम सत्ता चाहते तो अब तक चार बार प्रधानमंत्री बदल चुके होते।”
यह सुनकर श्रोताओं में ठहाका गूंज गया, लेकिन उनका संदेश साफ था — संघ राजनीति से ऊपर समाज सेवा की भावना रखता है।


थोड़ी हल्की बात – संघ का नया रूप?

अगर संघ को आज के डिजिटल युग में देखा जाए, तो यह “ऑर्गनाइजेशनल स्टार्टअप” जैसा है — बिना विज्ञापन के, बिना पेड प्रमोशन के, पर हर गली में उसकी शाखा!
100 साल पुराने इस संगठन की “नेटवर्किंग” देखकर कोई भी Silicon Valley वाला चौंक जाए।


FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

प्रश्न 1: क्या आरएसएस भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहता है?
उत्तर: मोहन भागवत के अनुसार, हिंदू राष्ट्र की अवधारणा किसी के विरोध में नहीं, बल्कि संविधान के अनुरूप है।

प्रश्न 2: क्या संघ राजनीति में शामिल है?
उत्तर: संघ खुद राजनीति नहीं करता। हालांकि इसके विचार कई राजनीतिक दलों, खासकर भाजपा, को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 3: संघ के 100 साल पूरे होने का क्या मतलब है?
उत्तर: यह संगठन के अनुशासन, सेवा और समाज से जुड़े कार्यों की शताब्दी है।

प्रश्न 4: क्या संघ मुसलमानों और ईसाइयों को भी भारत का हिस्सा मानता है?
उत्तर: हाँ, भागवत ने कहा कि भारत के सभी लोग एक ही पूर्वजों के वंशज हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों।


निष्कर्ष

मोहन भागवत का यह भाषण केवल आरएसएस की उपलब्धियों का जश्न नहीं था, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता का संदेश भी था। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि हिंदू संस्कृति किसी एक धर्म की सीमा में नहीं, बल्कि पूरे भारत की आत्मा में समाई है।

उनकी बातें सुनकर यह महसूस होता है कि संघ का शताब्दी वर्ष केवल संगठन का नहीं, बल्कि उस सोच का भी उत्सव है जो भारत को “एक सूत्र में पिरोने” की बात करती है।

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