कर्नाटक की कुर्सी पर ब्रेकफास्ट डिप्लोमेसी: सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने कहा – सब चंगा सी

HIGHLIGHTS
  1. सीएम सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार ने साथ में ब्रेकफास्ट किया।
  2. दोनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में मतभेद से इंकार किया।
  3. 2023 की कथित 2.5-2.5 साल वाली डील पर सस्पेंस बरकरार।
  4. बीजेपी और जेडीएस ने अविश्वास प्रस्ताव की चेतावनी दी, CM बोले—“ये बेकार की कोशिश है।”

 

राजनीति में Power Battle India लिखिए तो कर्नाटक इस समय टॉप रिज़ल्ट में दिखेगा। वजह बिल्कुल साफ है—एक कुर्सी, दो नेता और ढेर सारा राजनीतिक मसाला। शनिवार सुबह ठीक 10:15 बजे सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने साथ में ब्रेकफास्ट किया। जी हाँ, वही ब्रेकफास्ट—जिसके बाद टीवी डिबेट्स ने इसे नाम दिया:

👇
“Breakfast Diplomacy”

मतलब राजनीति का तनाव कम करने के लिए इडली, वड़ा और चाय। भारत में राजनीति और नाश्ता दोनों गर्मा-गर्म होने चाहिए, तभी स्वाद आता है।


कर्नाटक में राजनीतिक बवाल आखिर है क्या?

कहानी थोड़ी सी बॉलीवुड टाइप है—एक कुर्सी है, दो हीरो हैं और पार्टी हाईकमान निर्देशक की तरह ताल बजा रहा है।

2023 में जब कांग्रेस सरकार बनी, चर्चा हुई थी कि सीएम पद की कुर्सी पर 2.5 साल सिद्धारमैया और बाकी 2.5 साल डीके शिवकुमार बैठेंगे।

लेकिन बाद में ये डील ऐसे गायब हो गई जैसे बच्चों की छुट्टियों में होमवर्क। कोई मानता है, कोई कहता है—“कहाँ लिखा है? सब अफवाह है!”


प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्या हुआ?

ब्रेकफास्ट के ठीक एक घंटे बाद दोनों नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस में आए और माहौल ऐसा बना जैसे:

“हम बहुत अच्छे दोस्त हैं, सिर्फ लोग ही गलतफहमी में हैं।”

दोनों के बयान सुनिए:


🗣️ सिद्धारमैया बोले:

  • “हमारे बीच कोई मतभेद नहीं है।”

  • “न आगे होगा, न पीछे।”

  • “बीजेपी और जेडीएस झूठे आरोप लगा रहे हैं।”

  • “उनके पास 60 सीटें हैं, हमारे पास 140। अविश्वास प्रस्ताव लाने की सोच भी मजाक है।”


🗣️ डीके शिवकुमार बोले:

  • “CM जो भी कहेंगे, मैं उनके साथ हूं।”

  • “हाईकमान जो फैसला करेगा वही माना जाएगा।”

  • “हम कर्नाटक को विकसित करना चाहते हैं।”

बातों में मिठास थी, लेकिन हावभाव में कहीं न कहीं ‘देख लेंगे आगे’ वाला सस्पेंस भी छिपा था।


आख़िर मुद्दा क्या है?

👉 कुर्सी।
👉 सत्ता।
👉 और वह 2.5 साल वाला रोटेशन।

तालिका में समझिए विवाद का सार👇

विषय सिद्धारमैया कैंप डीके शिवकुमार समर्थक
2.5 साल की डील नहीं थी थी
भविष्य का नेतृत्व 5 साल सिद्धारमैया 2.5 साल के बाद डीके
स्थिति कैबिनेट विस्तार चाहेंगे पहले नेतृत्व पर फैसला

पिछले 10 दिनों का राजनीतिक टाइमलाइन

यह पूरा मामला अचानक नहीं हुआ।

तारीख घटना
20 नवंबर सरकार के 2.5 साल पूरे हुए
21 नवंबर शिवकुमार बोले—“CM पूरा टर्म चलाएंगे”
25 नवंबर BJP ने शिवकुमार का AI वीडियो जारी किया
26 नवंबर खड़गे बोले—“हाईकमान हल करेगा”
28 नवंबर दोनों नेता एक इवेंट में साथ दिखे
30 नवंबर सुबह साथ में ब्रेकफास्ट
30 नवंबर दोपहर जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस

AI VIDEO वाला विवाद थोड़ा और मजेदार था…

बीजेपी ने एक वीडियो शेयर किया जिसमें शिवकुमार ऑनलाइन मुख्यमंत्री पद खरीदने की कोशिश कर रहे थे और स्क्रीन पर लिखा आता है—

👉 “Out of Stock”

राजनीति में अब मीम, AI और सोशल मीडिया तलवार से ज्यादा तेज़ हो गए हैं।


हाईकमान की भूमिका

राहुल गांधी reportedly शिवकुमार से कह चुके हैं—
👉 “Please wait, will call.”

राजनीति में “Please wait” का मतलब होता है:

“अपडेट आएगा, तब तक नाश्ता करते रहो।”


जनता क्या सोच रही है?

लोगों के बीच अब ये चर्चा चल रही है:

  • क्या ब्रेकफास्ट ने विवाद खत्म कर दिया?

  • क्या 2.5 साल वाली डील असली थी?

  • क्या शिवकुमार इंतजार करेंगे या दिल्ली फिर जाएंगे?

कुछ लोगों ने तो मजाक में कहा:

“अगर कुर्सी में पहिए लगा होते तो अब तक 50 बार बदल चुकी होती।”


कर्नाटक कांग्रेस की स्थिति

  • सरकार स्थिर है

  • नंबर मजबूत हैं

  • लेकिन नेतृत्व पर सवाल बड़े हैं

और राजनीति में यही सवाल सबकी नींद उड़ाता है।


FAQs

1️⃣ क्या ब्रेकफास्ट के बाद विवाद खत्म हो गया?
अभी भाषाओं में हास्य है, लेकिन राजनीतिक भविष्य अभी भी सस्पेंस में है।

2️⃣ क्या 2.5 साल वाली डील सच में थी?
एक पक्ष कहता है हाँ, दूसरा कहता है—“Proof dikhao.”

3️⃣ बीजेपी और जेडीएस क्या करेंगे?
वे अविश्वास प्रस्ताव की बात कर रहे हैं, लेकिन नंबर उनके पास नहीं हैं।

4️⃣ हाईकमान क्या निर्णय ले सकता है?
या तो यथास्थिति, या बदलाव… या अगली मीटिंग के लिए इंतजार।


निष्कर्ष

कर्नाटक की राजनीति अभी पूरी तरह शांत नहीं हुई। आज की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने माहौल ठंडा जरूर किया, लेकिन कहानी खत्म नहीं हुई। आने वाले हफ्तों में तय होगा कि कर्नाटक का नेतृत्व किसके पास रहेगा—सिद्धारमैया पूरा कार्यकाल निकालेंगे या डीके शिवकुमार आधा रास्ते में कुर्सी संभालेंगे।

एक बात तो पक्की है—

राजनीति में रिश्तों से ज्यादा कुर्सी का वजन होता है, और कर्नाटक में अभी तराजू बराबरी पर अटका हुआ है।

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