Site icon Ham Bharat News

G20 समिट: ट्रम्प का बायकॉट, मोदी की पहल और साउथ अफ्रीका में विरोध – जानिए क्या हुआ पहले दिन

g20 summit day one update G20 समिट: ट्रम्प का बायकॉट, मोदी की पहल और साउथ अफ्रीका में विरोध – जानिए क्या हुआ पहले दिन
HIGHLIGHTS

1. अमेरिका के बायकॉट के बावजूद G20 घोषणा सर्वसम्मति से पास
2. पीएम मोदी ने तीन नई वैश्विक पहलें पेश कीं
3. साउथ अफ्रीका में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर बड़े प्रदर्शन
4. अगली G20 मेजबानी अमेरिका की लेकिन खाली कुर्सी ने लिया स्थान

पहले दिन की शुरुआत थोड़ी असहज थी क्योंकि G20 Summit जैसा बड़ा नाम और उसमे अमेरिका की खाली कुर्सी — ऐसा लग रहा था जैसे किसी शादी में बारात तो आई लेकिन दूल्हा कहीं PUBG खेलता रह गया।
वैसे माहौल गंभीर था, लेकिन ड्रामा भी कम नहीं।

कई नेता चेहरे पर मुस्कान लगाए कैमरे के लिए पोज दे रहे थे, पर अंदर सबको पता था कि अमेरिका की गैरमौजूदगी समिट की हवा थोड़ी पतली कर चुकी है।


अमेरिका का बायकॉट: खाली कुर्सी और बड़ी खबर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बायकॉट के फैसले ने सभी को चौंका दिया।

साउथ अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा ने बताया कि अमेरिका की गैर-मौजूदगी के बावजूद घोषणा-पत्र को मंजूरी देना जरूरी था।
मतलब सरल शब्दों में — “जो आया है, वही फैसला करेगा।”

कुछ पत्रकारों ने मज़ाक में कहा —

“कुर्सी खाली थी पर खबर फुल थी।”


क्या हुआ विवाद?

आखिर में G20 की अगली अध्यक्षता उस खाली कुर्सी को सौंपी जाएगी — थोड़ा अजीब, थोड़ा इतिहास, पर चलता है… दुनिया की राजनीति है।


पीएम मोदी का संबोधन: पुराने मॉडल बदलो वरना भविष्य रोएगा

पहले दो सत्रों में पीएम मोदी ने कई गंभीर मुद्दों पर अपनी बात रखी।
साथ ही SEO की दुनिया के लिए एक छोटा keyword भी ध्यान में आया — global development model — जिसे कई लोग Google पर ढूंढेंगे।


मोदी ने कहा—

“पुराने डेवलपमेंट मॉडल ने संसाधन छीने हैं और प्रकृति को नुकसान पहुंचाया है। इसे बदलना जरूरी है।”

बात तर्क वाली थी। दुनिया बदल रही है, और मॉडल अपडेट होने चाहिए — जैसे मोबाइल में सॉफ्टवेयर अपडेट आता है नहीं तो फोन लटक जाता है।


मोदी की 3 बड़ी पहलें

पहल का नाम उद्देश्य
वैश्विक पारंपरिक ज्ञान भंडार लोक ज्ञान और पारंपरिक चिकित्सा को जोड़ना
अफ्रीका स्किल इनिशिएटिव अफ्रीकी युवाओं के लिए रोजगार और ट्रेनिंग
ड्रग-टेरर नेक्सस इनिशिएटिव आतंकवाद और ड्रग नेटवर्क पर संयुक्त कार्रवाई

इन पहलों का उद्देश्य सिर्फ भाषण नहीं बल्कि असर करना है।

बहुत से प्रतिनिधियों ने इस पर तालियां बजाईं, कुछ ने सिर हिलाया और कुछ नोट्स लिखते दिखे — शायद इसलिए कि नोट्स लिखने से नींद कम आती है।


दिल्ली घोषणा पत्र: फिर याद आया भारत का नेतृत्व

समिट के दौरान 2023 का दिल्ली घोषणा-पत्र फिर चर्चाओं में आया।
उसकी कई बातों की समीक्षा की गई:

ये कदम भारत की कूटनीति की मजबूती दिखाता है।


G20 का इतिहास: कैसे बनी यह दुनिया की ताकत

एक समय था जब दुनिया चलती थी सिर्फ G7 के इशारों पर। लेकिन एशियाई आर्थिक संकट ने साबित कर दिया कि दुनिया किसी क्लब की तरह नहीं चलती जहां सिर्फ अमीर लोग बैठें और चाय पिएं।

1999 में G20 बनाया गया और 2008 से नेताओं ने शामिल होना शुरू किया। तभी यह सिर्फ “फाइनेंस मीटिंग” से “ग्लोबल मीटिंग” बन गई।


साउथ अफ्रीका की सड़कों पर गुस्सा: बड़े विरोध प्रदर्शन

दूसरी तरफ समिट के बाहर माहौल उबल रहा था।

सड़क पर उतर आए।

काले कपड़े पहनकर महिलाओं ने प्रदर्शन किया। यह दुख और विरोध दोनों का प्रतीक था।

उन्होंने 15 मिनट जमीन पर लेटकर शांत विरोध जताया — क्योंकि हर दिन लगभग इतनी महिलाएं हत्या का शिकार होती हैं।

साउथ अफ्रीका ने आखिरकार महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर दिया।


अलग-अलग समूहों का विरोध: सबकी अलग मांग, मुद्दा बड़ा

समूह मुद्दा
महिलाएं हिंसा, सुरक्षा
पर्यावरण कार्यकर्ता जलवायु परिवर्तन
यूनियन समूह बेरोजगारी
एंटी-इमिग्रेशन समूह सामाजिक भेदभाव

समिट जितनी ग्लैमरस नजर आती है, उसके बाहर उतनी ही वास्तविक समस्याएँ चीखती हैं।



FAQ

Q1: अमेरिका ने समिट का बायकॉट क्यों किया?
→ ट्रम्प और साउथ अफ्रीकी प्रशासन के बीच प्रोटोकॉल विवाद की वजह से।

Q2: पीएम मोदी की मुख्य घोषणाएं क्या थीं?
→ पारंपरिक ज्ञान भंडार, अफ्रीका स्किल इनिशिएटिव और ड्रग-टेरर फ्रेमवर्क।

Q3: क्या G20 में कोई बड़ा ऐतिहासिक फैसला हुआ?
→ हाँ, UNSC में भारत को सीट देने का प्रस्ताव पारित हुआ।


निष्कर्ष

पहले दिन के सारे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया कि राजनीति, आर्थिक रणनीति और सामाजिक संघर्ष — यह सब एक ही मंच पर साथ चल रहे हैं।
G20 समिट सिर्फ भाषणों का मंच नहीं बल्कि दुनिया की दिशा तय करने का प्रयास है।

अमेरिका चाहे शामिल हो या नहीं — दुनिया आगे बढ़ेगी। पीएम मोदी की पहलें और साउथ अफ्रीका की आवाज दोनों इस बात को साबित करती हैं कि बदलाव की मांग अब सिर्फ कागज़ पर नहीं, सड़क पर भी है।

आगे के दिनों में यह समिट और दिलचस्प हो सकती है — क्योंकि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सब कुछ बदल सकता है, बस चाय और कैमरा फ्लैश हमेशा रहता है।

Table of Contents

Toggle
Exit mobile version