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टाटा ट्रस्ट्स में फिर उठी हलचल: मेहली मिस्त्री का रिअपॉइंटमेंट फंस सकता है

टाटा ट्रस्ट्स में फिर उठी हलचल: मेहली मिस्त्री का रिअपॉइंटमेंट फंस सकता है

टाटा ग्रुप का नाम आते ही ज़ेहन में भरोसे और स्थिरता की तस्वीर उभरती है, लेकिन इस वक्त टाटा ट्रस्ट्स के गलियारों में सन्नाटा और फुसफुसाहट दोनों गूंज रहे हैं।

HIGHLIGHTS
  • टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी मेहली मिस्त्री का रिअपॉइंटमेंट रुक सकता है।
  • चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह मंजूरी से मना कर सकते हैं।
  • मेहली मिस्त्री का कार्यकाल 28 अक्टूबर को खत्म हो रहा है, फैसला 27 अक्टूबर को होना है।
  • रतन टाटा के निधन के बाद ट्रस्ट्स में मतभेद बढ़े, कानूनी लड़ाई की आशंका।


ट्रस्टी मेहली मिस्त्री का रिअपॉइंटमेंट (reappointment) रुक सकता है, क्योंकि चेयरमैन नोएल टाटा, वाइस चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह इसकी मंजूरी देने से मना कर सकते हैं। यानी ट्रस्ट के अंदर का माहौल कुछ ऐसा है — “एक तरफ सहमति का इतिहास, और दूसरी तरफ असहमति की नई कहानी।”


मेहली मिस्त्री का कार्यकाल खत्म, फैसला टलता दिख रहा

मेहली मिस्त्री का कार्यकाल 28 अक्टूबर को खत्म हो रहा है।
27 अक्टूबर को उनके रिअपॉइंटमेंट पर फैसला होना था, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि मामला “मीटिंग रूम” से निकलकर “लीगल रूम” तक पहुंच सकता है।
ट्रस्ट्स की परंपरा रही है कि फैसले हमेशा सर्वसम्मति से होते हैं, लेकिन रतन टाटा के निधन के बाद यह परंपरा जैसे धीरे-धीरे कमजोर हो गई है।


दो बड़े ट्रस्ट्स में हैं मेहली मिस्त्री

मेहली मिस्त्री टाटा ट्रस्ट्स के दो सबसे बड़े ट्रस्ट्स — सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) के ट्रस्टी हैं।
दोनों ट्रस्ट्स के पास टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में लगभग 51% हिस्सेदारी है, यानी ये वही ट्रस्ट्स हैं जो असल में पूरे टाटा साम्राज्य की रीढ़ हैं।

मिस्त्री 2022 से इन दोनों ट्रस्ट्स से जुड़े हुए हैं।
अब उनका कार्यकाल बढ़ाने का प्रस्ताव टाटा ट्रस्ट्स के सीईओ सिद्धार्थ शर्मा ने शुक्रवार को रखा, लेकिन मंजूरी पर ही विवाद खड़ा हो गया।


कौन हैं समर्थन में और कौन विरोध में

सूत्रों के मुताबिक डेरियस खंबाटा, प्रमित झावेरी और जहांगीर एचसी जहांगीर जैसे ट्रस्टी मिस्त्री के रिअपॉइंटमेंट के पक्ष में हैं।
दूसरी ओर, नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह ने कानूनी राय मांगी है।
कह सकते हैं, मामला अब “क्रिकेट मैच” जैसा हो गया है — कुछ लोग पिच पर तैयार हैं, और कुछ अभी तक ड्रेसिंग रूम में सोच रहे हैं कि खेलना भी चाहिए या नहीं।


रतन टाटा के बाद ट्रस्ट्स की परंपरा टूटी

रतन टाटा के समय में टाटा ट्रस्ट्स में हर फैसला एकमत से लिया जाता था।
मतभेद होते भी थे, तो वो मीटिंग रूम के बाहर नहीं आते थे।
लेकिन उनके निधन के बाद से तस्वीर बदल गई है।
करीब एक साल पहले ट्रस्टीज ने बहुमत से पूर्व डिफेंस सेक्रेटरी विजय सिंह को टाटा संस के बोर्ड से हटा दिया था।
यह इतना बड़ा फैसला था कि पूरे देश का ध्यान टाटा ट्रस्ट्स की अंदरूनी कलह पर चला गया।

सरकार को भी बीच में आकर स्थिति संभालनी पड़ी थी।
कहा जा सकता है कि “रतन टाटा के बाद का टाटा ट्रस्ट्स” अब पहले जैसा शांत और सामंजस्यपूर्ण नहीं रहा।


कानूनी राय और गवर्नेंस के पेच

टाटा ट्रस्ट्स का गवर्नेंस मॉडल कंपनियों जैसा नहीं है।
जहां कंपनियां Companies Act के तहत चलती हैं, वहीं ट्रस्ट्स का संचालन Maharashtra Public Trusts Act, ट्रस्ट डीड और समय-समय पर पास किए गए रेजोल्यूशन के मिश्रण से होता है।

1932 में लिखी गई सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट की ट्रस्ट डीड के मुताबिक:

अब सवाल यह है कि अगर कोई ट्रस्टी असहमति जताता है, तो क्या रिअपॉइंटमेंट बहुमत से पास हो सकता है या सर्वसम्मति जरूरी है?
यह कानूनी पेच इस बार ट्रस्ट्स के सामने एक बड़ा सवाल बनकर खड़ा है।


17 अक्टूबर की मीटिंग और नया रेजोल्यूशन

रतन टाटा के निधन के ठीक नौ दिन बाद, 17 अक्टूबर को ट्रस्टीज की मीटिंग हुई थी।
उस मीटिंग में यह तय हुआ कि हर ट्रस्टी का टर्म खत्म होने पर उसकी बहाली बिना किसी टर्म लिमिट के की जाएगी।

लेकिन यहीं से नई कहानी शुरू होती है — क्योंकि मेहली मिस्त्री ने पिछले हफ्ते वेणु श्रीनिवासन की बहाली को “शर्त के साथ” मंजूरी दी थी।


मिस्त्री की शर्त: सबके लिए समान नियम

मिस्त्री ने ईमेल में लिखा था कि अगर किसी ट्रस्टी की बहाली सर्वसम्मति से न हो, तो वे श्रीनिवासन की बहाली को अपनी औपचारिक मंजूरी नहीं देंगे।
उनकी राय थी — “अगर एक ट्रस्टी के लिए एकमत रेजोल्यूशन है, तो बाकियों के लिए भी वैसा ही होना चाहिए।”

कह सकते हैं कि मिस्त्री ने ट्रस्ट के लिए “एक ट्रस्टी – एक नियम” की मांग उठाई है।
हालांकि, बाकी ट्रस्टी मानते हैं कि यह शर्त कानूनी तौर पर टिकाऊ नहीं है, क्योंकि एक बार पास हुए रेजोल्यूशन को वापस नहीं लिया जा सकता।


अब क्या करेंगे मेहली मिस्त्री?

सूत्र बताते हैं कि ट्रस्ट के अंदर अब यह चर्चा चल रही है कि क्या मिस्त्री अपनी मंजूरी वापस ले सकते हैं या वे इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देंगे।
नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और विजय सिंह पहले ही इस मामले पर लीगल एडवाइस ले चुके हैं।
एक ट्रस्टी ने कहा है — “शर्त लगाकर दी गई मंजूरी कानूनी रूप से वैध नहीं होती, और पास हुआ रेजोल्यूशन वापस नहीं लिया जा सकता।”

यानि, मामला अब ट्रस्ट मीटिंग से ज्यादा “कानूनी चालबाज़ी” में फंस चुका है।


कौन हैं मेहली मिस्त्री?

मेहली मिस्त्री सिर्फ नाम से नहीं, काम से भी बड़े खिलाड़ी हैं।
वे एम पलॉन्जी ग्रुप के प्रमोटर हैं, जो इंडस्ट्रियल पेंटिंग, शिपिंग, ड्रेजिंग और कार डीलरशिप जैसे बिजनेस में है।
उनकी कंपनी स्टरलिंग मोटर्स, टाटा मोटर्स की डीलर है।

सबसे दिलचस्प बात यह है कि मेहली मिस्त्री शापूरजी मिस्त्री और स्वर्गीय साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई हैं।
यानी वो परिवार, जिसने कभी टाटा ग्रुप के साथ साझेदारी में इतिहास रचा, आज फिर उसी ग्रुप की आंतरिक राजनीति के बीच खड़ा है।


टाटा ट्रस्ट्स और मिस्त्री परिवार का जटिल रिश्ता

टाटा ग्रुप और मिस्त्री परिवार का रिश्ता हमेशा से “मीठा-तीखा” रहा है।
शापूरजी पलॉन्जी ग्रुप के पास टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है।
कभी यह साझेदारी ग्रुप की मजबूती मानी जाती थी, लेकिन साइरस मिस्त्री और टाटा संस के बीच विवाद ने दोनों के बीच की दरार को उजागर कर दिया।

अब जब मेहली मिस्त्री खुद ट्रस्ट का हिस्सा हैं, तो यह मामला और संवेदनशील हो गया है।
कई लोग इसे “पुराने घावों की वापसी” के रूप में देख रहे हैं।


अगर फैसला अटक गया तो क्या होगा?

अगर 27 अक्टूबर की मीटिंग में मेहली मिस्त्री का रिअपॉइंटमेंट मंजूर नहीं होता, तो ट्रस्ट में खाली पद रह जाएगा।
यह स्थिति पहले कभी नहीं आई, क्योंकि टाटा ट्रस्ट्स में हमेशा ट्रस्टीज की निरंतरता बनी रही है।

ऐसे में या तो नया ट्रस्टी नियुक्त करना पड़ेगा, या फिर अस्थायी रूप से किसी को जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
लेकिन एक बात तय है — इस विवाद का असर टाटा ग्रुप के कॉरपोरेट फैसलों तक भी पहुंच सकता है।


टाटा ट्रस्ट्स में सहमति बनाम बहुमत

पैमाना रतन टाटा के समय मौजूदा स्थिति
निर्णय प्रक्रिया सर्वसम्मति बहुमत का चलन
मतभेद का समाधान बातचीत से कानूनी राय से
नेतृत्व शैली भावनात्मक और दूरदर्शी औपचारिक और कानूनी
माहौल सामंजस्यपूर्ण अस्थिर और विभाजित

तालिका खुद बता रही है कि टाटा ट्रस्ट्स अब संक्रमण काल में है — एक ऐसा दौर जब परंपरा और नियम दोनों टकरा रहे हैं।


हास्य का एक कोना

टाटा ट्रस्ट्स की गंभीर मीटिंग में भी अगर कोई रिपोर्टर अंदर झांक सके, तो शायद एक चायवाला बोले —
“साहब, ये मीटिंग नहीं, माइंड गेम चल रहा है।”
क्योंकि यहां हर लाइन के पीछे कानूनी दांव है, और हर खामोशी में अगला कदम छिपा है।


FAQs

Q1. मेहली मिस्त्री कौन हैं?
वे एम पलॉन्जी ग्रुप के प्रमोटर और टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी हैं, साथ ही साइरस मिस्त्री के चचेरे भाई हैं।

Q2. उनका कार्यकाल कब खत्म हो रहा है?
28 अक्टूबर को मेहली मिस्त्री का कार्यकाल समाप्त हो रहा है।

Q3. रिअपॉइंटमेंट पर विवाद क्यों है?
कुछ ट्रस्टी उनके दोबारा चुने जाने के पक्ष में नहीं हैं और कानूनी राय ले रहे हैं।

Q4. क्या मामला कोर्ट तक जा सकता है?
हां, अगर सहमति नहीं बनी तो मेहली मिस्त्री इस मामले को कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं।

Q5. टाटा ट्रस्ट्स में रतन टाटा के बाद बदलाव क्या आए?
अब फैसले सर्वसम्मति से नहीं, बल्कि बहुमत से लिए जा रहे हैं, जिससे मतभेद बढ़े हैं।


निष्कर्ष

टाटा ट्रस्ट्स, जो कभी स्थिरता और नैतिकता की मिसाल माना जाता था, अब खुद एक “कहानी” बन चुका है।
मेहली मिस्त्री का रिअपॉइंटमेंट सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि टाटा ट्रस्ट्स की नई दिशा का संकेत है।
अगर यह विवाद लंबा खिंचता है, तो आने वाले समय में टाटा समूह की गवर्नेंस पर भी इसका असर पड़ सकता है।

कुल मिलाकर कहा जाए तो — टाटा ट्रस्ट्स का यह अध्याय अभी खत्म नहीं हुआ, बस अगला पन्ना पलटने वाला है।

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